कविता गिद्ध और चिड़िया
गिद्ध और चिड़िया
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पूछा जो उनसे ‘अब किधर ‘कहा जा रहे हो
भाई गिद्धे क्यों :मुझको इतना सता रहे हो
रोती बिलखती बहन चिडीया छोड़ जा रहे हो
क्या गलती हो गई मुझसे :जो नज़रे चुरा रहे हो
गिद्ध बोला :_
कभी था तुझसे ही था ,मेरे देश का नाम रोशन
सोने की चिड़िया कहा करते थे ,इसको लोग
प्रिये बहना गर्व करते थे तुझपर तब हम लोग
ईश्वर से तो पाई थी हम गिधौ ने गिद्ध दृष्टि
पर मानवों ने अपना ली हमारी गिद्ध दृष्टि
कभी नहीं घुमाई थी हम गिधौ ने बहना मेरी
अपनी माँ ,बहन ,बहु ,बेटियों पर गिद्ध दृष्टि
मानवता के ये गिद्ध है तुझको नोच खा रहे हैं
इसलिए छोड़ अपना ये वतन अब हम जा रहे है
इनकी तो बात बात में साज़िशों का घोटाला हैं
इंसानो ने हमको बदनाम हर बात कर डाला है
सुन चिड़िया बोली
ठीक कहा मेरे भाई मैं ,भी संग तेरे आती हूँ
अपनी दुःख भरी व्यथा आज तुम्हे सुनाती हूँ
कहते थे कभी मुझको घर पर जो मेरे बाबुल
मेरे घर आँगन में तू खेली जहां तू चन्हचाई हैं
जा अब तू अपने पिया घर अब तू तो पराई हैं
भाई तो भाई अब पिता भी नोच खाने लगे हैं
अपनी हवस का रोज मुझे शिकार बनाने लगे हैं
बाप बाप था जन्म से पहले मार मुझे गिराई हैं
बाप तो छोडो माँ ने भी ममता अब गवाई हैं
तभी पास खड़ा एक कुत्ता उनसे कहता हैं
ठीक कहा भाई गिद्धे और मेरी प्यारी बहना
मुझको भी तुमसे हैं अपनी दिल की कहना
जब जब फेका तुझको कूड़े के ढेर में
मैंने तुझे कूड़े से निकाल कुतियत दिखाई हैं
कोई नहीं आया तुझको बचाने प्यारी बहना
लाचार मैंने भी तुझको नोच नोच खाई हैं
यह दिन हैं और वो दिन हैं मेरी भार्या भी नही आने देती पास मुझे जब हो बच्चे मेरे तो कहती हैं
इंसान तो बेईमान ठहरा तूने भी देश की बेटी नोंच नोंच खाई हैं
इंसानो ने इंसानियत और आज तूने भी अपनी कुत्तीयत गंवाई हैं
अशोक सपड़ा ,बी 11 /1गली no 8 नियर कृषणा डेरी चंदर नगर दिल्ली 51
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