कविता कोरोना काल
वक्त-वक्त का बीत गया
समय वहीं का वहीं रहा
कर्मठताओं के साथ ही
एक समय नि:शब्द रहा
कोरोना काल का दिन
बेखबर था बीत गया
साल खतम हो गया
फिर से काल आ गया
तबाही मंज़र दिखा
रहा समय स्तिथि के
बखूबी निभा रहा है
बिन सोचे समझे
निरंतर दर बदर
बेकार पल याद
आ रहा कब खतम
होगा ये काल पूछ रहा।
खरगोन मध्यप्रदेश 451001
-हार्दिक महाजन