कविता के मयख़ाने
मेरी जवानी तेरी जवानी की मोहताज़ नहीं,
शोर तो बहुत है पर तूँ कोई आफताब नहीं,
फट चुके हों सारे पन्ने,कवर का क्या करें,
जो मयख़ाने में मिट जाय वो तेरे पास नहीं,
(मयखाना सिर्फ शराब का ही नहीं बल्कि कविता का भी होता है)
मेरी जवानी तेरी जवानी की मोहताज़ नहीं,
शोर तो बहुत है पर तूँ कोई आफताब नहीं,
फट चुके हों सारे पन्ने,कवर का क्या करें,
जो मयख़ाने में मिट जाय वो तेरे पास नहीं,
(मयखाना सिर्फ शराब का ही नहीं बल्कि कविता का भी होता है)