कविता का महत्त्व
कविता से पहचान बनी है, कविता मेरा काम बनी है
पहले मेरे दिन बोरिंग थे, अब मेरी हर शाम बनी है
दर्द रहे तो घट जाता है, हर्ष जरा सा बढ़ जाता है
हर मुश्किल मे साथी हो जो, कविता मेरा जाम बनी है
पहले मैं विचलित फिरता था, मंजिल का कुछ पता नहीं था
अब कविता है युक्ति बढ़ने की , कविता ही परिणाम बनी है
पहले कोई सम्मान नहीं था, मुझ पर जन का ध्यान नहीं था
कैसे दिल को जीतू सबके , इतना भी मुझे ज्ञान नहीं था
फिर मैंने जब तथ्य लिखे कुछ , सबको अपने पक्ष दिखे
अब कविता ही तारीफें सारी, कविता ही ईनाम बनी है
गिरते पड़ते थे मेरे पग, मुझ को कोई होश नहीं था
बंद पड़े थे नैन और जिव्हा, इसमे मेरा दोष नहीं था
फ़िर सीखा जब उठना, लड़ना, चलना, गिरना फिर से उठना
गिरने से पहले जो आए, कविता अब वो थाम (खम्भा) बनी है
मेरे जैसे लाख पड़े हैं, जिनका कोई मोल नहीं है
कर दे जो नीलाम जगत में, कविता ही वो दाम बनी है
और कविता ही संघर्ष है मेरा, कविता ही विश्राम बनी है
कविता ही अब छाव है सिर की, कविता ही अब घाम बनी है