कविता :– काम करने चला बचपन !!
कविता :– काम करने चला बचपन !!
खानें की चाह पे खोया बचपन
रातों को राह पे सोया बचपन ,
सहम-सहम के रोया बचपन
फिर भी बोझा ढोया बचपन !
मुश्किलो मे पला बचपन
काम करने चला बचपन ,
धूप आँच से जला बचपन
ठण्ड मे भी गला बचपन !
तूफानो मे हिला बचपन
मयखाने मे मिला बचपन ,
जख्मों को भी सिला बचपन
कहीं , कलियों सा भी खिला बचपन !
जिसनें भी ये जना बचपन
पापी हाथो से हना बचपन ,
जुल्म से भी सना बचपन
यहाँ कातिल बना बचपन !
यहां इक्कीसवी सदी का बचपन
चौराहे पे बिका बचपन ,
सम्बिधान ने लिखा बचपन
बोझ उठाते दिखा बचपन !
भारत का भाग्य विधाता बचपन
बेच रही है माता बचपन ,
खाने को तरसाता बचपन
उनसे भीख मगाता बचपन !
कलम की जगह तलवार थमाया बचपन
क्यों हथियार उठाया बचपन ,
मस्ती मे मतवाला बचपन
कहां गया दिलवाला बचपन !
“देश बेहाल चलाने वालों
तुम भी तो अन्जान नही !
बचपना न कर यूँ बचपन से
बिनु बचपन देश जवान नही ” !!
(- Anuj Tiwari “Indwar” -)