# कविता और कवि …
# कविता और कवि …
ये तो है ,
बिखरती चांदनी ,
गुनगुनाती रागनी ,
महकती बहती हवा …!
किसी ने दर्द ,
किसी ने मरहम
किसी ने खुशी ,
किसी ने गम कहा …!
कोई / कैसे
आखिर इसे ,
मन के आंचल में ,
समेटे कहां …?
यह लिखी नहीं जाती ,
खुद-ब-खुद लिख जाती है ,
जरा गौर से देखो तो ,
हर जगह मिल जाती है …!
मिलेगी तुम्हें ये ,
सारी कायनात के
जर्रे-जर्रे से लेकर ,
संसद से समाधि तक
और तो और ये ,
समाज की व्याधि तक …!
मन की भावनाओं से ,
निकलती मचलती हुई ,
कविता वक्त के सांचे में ,
एक ढलती हुई मोम है …!
सच वही कवि जो ,
लिखता निर्बाध गति से
बोलते उसके शब्द ,
और रहता वो मौन है …!
पर हां आजकल के ,
कविताओं में कविता कहां
होते कुछ लफ्ज़ और
अर्थ रहता सब गौण है …!
ये तो है ,
उनमुक्त गगन का पंछी
इसे पिंजरे में ,
कैद करने वाले ,
हम कौन हैं …?
इसे गद्यों , पद्यों ,
पंक्तियों और छंदों में ,
लिखकर अपने को कवि
कहने वाले हम कौन हैं ,
आखिर हम कौन हैं …?
चिन्ता नेताम ” मन ”
डोंगरगांव (छ.ग.)