कविता–“इंतजार”
इंतज़ार
तेरे इंतज़ार में,
ना जाने कितने जन्मों से,
बस पलकें बिछाए बैठे हैं।
अब तो आखिरी साँस भी….
जवाब देने लगी है।
आओ तो देखना मेरी आँखो में,
जो बरसों से तेरे ही ख्वाब सजाए बैठी है।
डयोढी पर ही छोड़ देना तुम,
अपना अहम्,
बाहर लगे गुलाब के फूलों से,
ले आना प्रेम की खुश्बू।
तेरे इंतजार में….
बरबस ही बरस जाती रही जो आँखें,
उन लम्हों का अहसास करना,
जो जिए हैं हमनें तुम बिन,
प्रीत और समर्पण की चाय,
चढ़ा रखी है मद्धम सी आँच पर,
घूँट-घूँट करके पीना।
ओ! रंगरेजवा…..
अनुभूति करना प्रीत के उस रंग की,
जिसमें श्वेत सी ये रूह,
रंगी है बरसों से….
साँस अब साथ छोड़ रही हैं,
मिलना अब दूर क्षितिज पर,
जहाँ मैं तेरे अनमनेपन पर,
मनुहारों का पंखा झुला दूँ ।।
✍माधुरी शर्मा ‘मधुर’