कविता : आशा का दीपक
आशा का दीपक जला रहे,
तभी चेहरा खिला रहे।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है,
माने लेकर सिला रहे।।
कुछ भी हो सकता करने से,
नहीं फ़ायदा डरने से।
चला उसे कौन रोक पाया,
प्रीतम पार उतरने से।।
आशा के दीप जलाए चल,
गीत ख़ुशी के गाए चल।
मंज़िल इंतज़ार में बैठी,
चाहत प्रेम जताए चल।।
ज़ुनूनियत से ख़ोज़ ख़ुदा को,
इकदिन वह मिल जाएगा।
जिसपर तेरा दिल आया है,
उसका भी हल आएगा।।
तिनका-तिनका जोड़े चिड़िया,
अपना नीड़ बनाने को।
बूँद – बूँद से सागर भरता,
कोशिश फल दर्शाने को।।
समय लगे चाहे कितना भी,
यत्न हमेशा फलता है।
यहाँ मेहनत का ज़ादू तो,
मान लीजिए चलता है।।
आशा का दीपक ओज बढ़ा,
क़दम नहीं रुकने देता।
करे उजाला आत्मा पर ये,
कभी नहीं झुकने देता।।
एकलव्य का ज़ज्बा देखो,
राह निकल कर आएगी।
नदी बहे मगर अकेली,
सागर तक पर जाएगी।।
#स्वरचित रचना
#कवि आर.एस. ‘प्रीतम’