( कविता ) आनंद
थोडी हो सुगंध मंद
बहके जो अंग अंग
प्यार का चढ़ा हो रंग
यही तो आनंद है ।
होय परिवार संग
यार दोस्त चार चंद
जेब बस न हो तंग
यही तो आनंद है ।
थोड़ी सी चढ़ा के भंग
मस्तियों के रंग ढंग
आपस मे न हो जंग
यही तो आनंद है ।
प्रकृति के रूप रंग
दिखते हैं जो विहंग
मन मे रहे उमंग
यही तो आनंद है ।
उठने लगे तरंग
बढ़ने लगे आनंद
उर मे हो ईश संग
यही सदानंद है ।।
गीतेश दुबे ” गीत “