कविता (आओ तुम )
आओ तुम
आओ तुम ……….!
अपनी सारी नसीहतें
ढ्योढी पर
छोड़ कर
आओ तुम ……….!
मुक्त मन का वही
दर्पण लेकर।
निहारेंगे
उस दर्पण में
सरल हो जाएंगे
अपना अक्स
तुम सा कर जाएंगे
आओ तुम ………..!
छुटपन सी सुझबूझ
अबूझ पहेलियों के
झमेले लेकर ।
झमेले के झोले में
हर्ष उल्लास के
उपकरण
औजार होंगे ।
विरक्त निस्तेज
अवसन्न के मखरज पर
मुकुलित मुस्कान
जड़ देंगे।
विषम विकीर्ण
मानस पटल
समदर्शी तासीर से
तर कर देंगे।
आओ तुम……….. !
निश्छल लड़कपनी
उड़न खटोले
पर बैठकर।
संगीता बैनीवाल