कविता- अंतर्मन की कौन सुने?
कविता- अंतर्मन की कौन सुने?
रहीं भावना टूट यहाँ पर,
अंतर्मन की कौन सुने?
अपने प्रियजन रूठ रहे हैं,
अंतर्मन की कौन सुने?
ख्वाब नये दिल में नित आते,
ये दिल का अफ़साना है |
अफ़साना ये किसे सुनाएँ,
अंतर्मन की कौन सुने?
सपनों में तुमको नित तकना,
पागल मन की आदत है |
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तुम ही जब यह समझ न पाये,
अंतर्मन की कौन सुने?
सब ही बने हुए हैं काफिर,
कौन भरोसेमंद यहाँ?
एक विश्वास बना जो पाए,
अंतर्मन की कौन सुने?
हैं पाषाण यहाँ अब सारे,
हिय कोमल एक मेरा है |
प्रेमभाव से सहला दे जो,
अंतर्मन की कौन सुने?
टूट गये हैं अंदर से हम,
प्रेम चाहिए थोड़ा सा |
एक पल को जो गले लगाले,
अंतर्मन की कौन सुने?
हुई अजनबी खुशी हमारी,
मिलने की है वजह नहीं |
चेहरे पर मेरे लौटाये,
अंतर्मन की कौन सुने?
खोया हूँ मैं खुद से ही अब,
मिलने का है पता नहीं |
मुझसे मुझको जो मिलवाये,
अंतर्मन की कौन सुने?
-शिवम् सिंह सिसौदिया,
ग्वालियर, मध्य प्रदेश,
सम्पर्क सूत्र – 8517070519,
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