कविता~सौगन्ध ली फर्ज निभाने की
सौगन्ध ली फर्ज निभाने की—
——————————–
ना हसरत है कुछ पाने की,आदत भी ना ललचाने की।
निस्वार्थ भाव से हो सेवा,सौगन्ध ली फर्ज निभाने की।।
सरहद पर सैनिक खड़ा हुआ,ना भूख प्यास का ख्याल रहे,
थर्रायें दुश्मन देख देख ,बनकर के उनका काल रहे,
उँचा हर पल बस भाल रहे, फिक्र ना सर कट जाने की।
निस्वार्थ भाव से हो सेवा,सौगन्ध ली फर्ज निभाने की।।
भोर हुई बिस्तर छुड़ जाये, दो बैलों का साथ मिले,
बहा पसीना धरती सीँचे, खेतों में खलिहान खिले,
दबा हुआ एहसान तले,घड़ी आ गई कर्ज चुकाने की।
निस्वार्थ भाव से हो सेवा,सौगन्ध ली फर्ज निभाने की।।
सदा रहे सेवा में तत्पर, एक पल का आराम नहीं,
लगे सादगी इतनी प्यारी, धन दौलत का भान नहीं,
शौहरत का भी अरमान नहीं, इच्छा बस कलम उठाने की।
निस्वार्थ भाव से हो सेवा,सौगन्ध ली फर्ज निभाने की।।
सिंहासन सारा हिल जाये,ललकार कभी जो सुन जाती,
अन्याय-ज्यादती मुहँ फेरे,हों बन्द तो आँखे खुल जाती,
हक की आवाज़ जो उठ जाती,धुन लगती छन्द बनाने की।
निस्वार्थ भाव से हो सेवा,सौगन्ध ली फर्ज निभाने की।।
ना हसरत है कुछ पाने की,आदत भी ना ललचाने की।
निस्वार्थ भाव से हो सेवा,सौगन्ध ली फर्ज निभाने की।।
✍ शायर देव मेहरानियाँ
अलवर, राजस्थान
(शायर, कवि व गीतकार)
slmehraniya@gmail.com