कवितायें सब कुछ कहती हैं
अनुराग बिखेरे फिरती हैं।
कवितायें सब कुछ कहती हैं।
निर्झर बन करके बहती हैं,
कवितायें सब कुछ कहती हैं।
प्रिय ग्रन्थों के अध्यायों में,
बन हीरा पन्ना मणि मोती ।
हैं अक्षर बन करके जीवित,
देदीप्यमान इनकी जोती।
इनमें सुख,दुख,करुणा,क्रन्दन,
कहीं हास्य श्रृंगार व है वन्दन।
कहीं व्यंग्य,प्रेम,अभिनन्दन है,
कहीं कीकड़ है कहीं चन्दन है।
सब कुछ अंतर में समा लिया।
कभी प्रेम किया कभी रुला दिया।
कभी लोट पोट कर देती है।
आँचल में सब भर लेती है।
तन छोड़ चले जो कलमकार,
शब्दों में जीवित महाकार।
ज्यों नील गगन में तारे हैं,
अक्षर बन साथ हमारे हैं।
शिव तांडव कविता के अंदर,
अब भी जीवित है दशकन्दर।
रुद्राष्टक में है रामबोला,
आह्लादित होते शिव भोला।
मार्कण्डेय शक्ति पुराण में है,
श्रीव्यास वेद प्रमाण में हैं।
राधा संग गोपियां रहती हैं,
कवितायें सब कुछ कहती हैं।
भूषण विद्यापति मतिराम
रस वीर श्रृंगार व प्रेम काम।
जगनिक का आल्हा जोश भरे,
वीरों के यश कर नाम करें।
कादंबरी में बसता भट्ट बाण,
बन महाकवि बन महाप्राण।
कितना गुजर जाये जमाना,
शेख फरीद,बाहू सुल्ताना।
इश्क़ में बुल्ला भया दीवाना,
शाह हुसैन अज़ब मस्ताना।
ये जीवित बन पाक कलाम,
अब भी जन झुक करें सलाम।
गोस्वामी तुलसी कहाँ मरा,
चौपाई बन कर पास खड़ा।
रसखान है सूर कबीरा हैं,
लगता संग सहित शरीरा हैं।
बोली तो राजस्थानी है,
कविता में विरह की वाणी है।
जीवन्त एक भक्ति कहानी है,
मीरा क्या प्रेम दीवानी है।
पत्नी से आहत मूर्ख युवक,
देवी को मनाने निकल पड़ा।
कवि नहीं महाकवि बन करके,
कई महाकाव्य लिए पास खड़ा।
विक्रम सम्भव या रघुवंशम
अभिज्ञान शाकुन्तल मेघदूत।
अग्निमित्र मालविका रचनाएं,
कर देती सबको वशीभूत।
मैथिली शरण नहीँ गुप्त कहीं,
लगता है दिनकर,पन्त यहीं।
माखन,प्रसाद, निराला हैं,
साहित्य के एक शिवाला हैं।
गाथा के प्रेम की वेदी पर
खुब लिखा प्रेमचंद बन मुंसी।
निर्मला और गोदान गबन,
रचना ज्यों बजती हो बंसी।
क्या अजब पिलाती है हाला,
हरिवंशराय की मधुशाला।
तिनकों से नीड़ निर्माण करे,
और कर देती है मतवाला ।
मुक्तिवोध वाक्यों को छेड़ा,
हो गया चाँद का मुंह टेढ़ा।
अब तक के सारे कलमकार,
उन सबको मेरा नमस्कार।
कल कल धारा बन बहती हैं,
कवितायें सब कुछ कहती हैं।
अनुराग बिखेरे फिरती हैं।
कवितायें सब कुछ कहती हैं।
सतीश ‘सृजन’