कविताएं
जिनके खुले दर होते हैं ।
किस्मत वाले घर होते हैं।।
वो ही अंबर छूते देखे ।
जिनके पुख्ता पर होते हैं ।।
कोई नहीं है जग में उनका ।
जिनकी जीभ पे शर होते हैं ।।
जिनके हाथ सियासत यारों।
उनके सब अनुचर होते हैं ।।
संस्कारवान हों बच्चे जिनके।
उनके ऊंचे सर होते हैं ।।
पाप हो जिनके मन में यारों ।
उनके दिल में डर होते हैं ।।
सच्ची राह दिखाने वाले ।
जग में मुट्ठी भर होते हैं ।।
जो जीते हैं जग की खातिर ।
वो ही दर्द अमर होते हैं ।।
2
ख्वाबों ख्यालों में रात गुजर गई ।
मुश्किल सवालों में रात गुजर गई ।।
उन्नींदे सपनों अधूरी चाहतों और ।
मोह के जालों में रात गुजर गई ।।
न मरहम हुआ न दवा कोई ।
रिसते हुए छालों में रात गुजर गई।।
तमाम उम्र खुशियों के भरम में।
आंसुओं के प्यालों में रात गुजर गई।।
कैसी बज़्म थी कि सहर तक उठ न पाए ।
दुश्मन की चालों में रात गुजर गई ।।
नज़्मों ग़ज़लें मुहब्बत के नाम की ।
ढूंढते हुए रिसालों में रात गुजर गई ।।
3
कभी पाक मोहब्बत को यारा बदनाम न कर ।।
दो रूह न मिल पाएं ऐसा कोई काम न कर ।।
कभी गैर नहीं होते अपनों के जैसे सुन ।
गैरों की महफिल में कभी जाकर जाम न भर ।।
जो चलते रहते हैं वही मंजिल पाते हैं ।
कभी बैठ के रस्ते में यारा यूं शाम न कर ।।
यह प्यार मोहब्बत तो सब रूह के सौदे हैं ।
इन रूह के सौदों का यारा तू दाम न कर ।।
जो छोड़ दें रस्ते में वो अपने नहीं होते।
उस बिछड़न के गम में खुद को नाकाम न कर ।।
4
कभी गर याद आऊं तो , ख्वाबों में बुला लेना ।
जो गालों पे लुढ़क आऊं, दुपट्टे से छुपा लेना ।।
चाहत की महक से जब तुम्हारी बज़्म महके तो ।
जो गहरी रात उतर आए तो शमां को बुझा देना ।।
कभी आए कोई तूफां अगर राहे मोहब्बत में ।
कसम तुमको मोहब्बत की अना मेरी बचा लेना।।
तन्हाईयां अगर डसने लगें तो हार मत जाना ।
मेरे तुम नाम से यारा फिर महफिल सजा लेना ।।
खिजां के मौसमों को देखकर यूं उदास न होना ।
बहारें आएंगी चाहत यह पलकों पर सजा लेना ।।
करना न कभी रुखसत मुझे तुम भीगी पलकों से ।
दिखे हंसता हुआ चेहरा ऐसी तुम विदा देना ।।….
5
बेशक कुछ जख्म ताउम्र भरा नहीं करते।
मगर इनसे लोग कभी मरा नहीं करते ।।
वो हार जाते हैं युद्ध जीतने से ही पहले ।
दुनिया से पहले जो खुद से लड़ा नहीं करते ।।
ये दिल भी बेशक आईने से होते हैं यारों।
आईने टूटकर फिर कभी जुड़ा नहीं करते ।।
जिनमें चाहत होती है मंजिलों को पाने की ।
वो पथरीले रास्तों से डरा नहीं करते ।।
उनके हिस्से ही आती हैं दौलतें शोहरतें यारों ।
जो हाथों पर हाथ कभी धरा नहीं करते ।।
वो रह जाते हैं नादां के नादां ही उम्र भर ।
जो मुश्किलों से खुद को गढ़ा नहीं करते ।।
उसकी निगरानी में होते हैं जो बाग़ बगीचे ।
लाख अंधड़ आएं उनके फूल झड़ा नहीं करते ।।
(11-12-2022 जोगिंदर नगर )
6
कश्ती तूफान में थी ,और किनारे भी दूर थे ।
जिंदगी के भंवर में हम, कितने मजबूर थे ।।
यह जो तिड़कने की सी, आवाज थी हुई ।
राहे मोहब्बत में ख्वाब किसी के, टूटे जरूर थे ।।
अब तलक भी नहीं छूटे, कुछ रंग जो ज़हन से ।
उस तसव्वुर के वे रंग भी, कितने पुरनूर थे ।।
पलकों पे रहते हैं जो अब, छलकती नमी की तरह ।
उनके इश्क में कभी हम, कितने मगरूर थे ।।
किसी ने इरशाद न कहा, यह अलग बात है वरना ।
कितने ही अशआर हमने ,उनके लिए कहे हुजूर थे ।।
महफिल थी जवां और ,छलकते हुए जाम थे ।
पीने पिलाने का दौर था ,सब रिंद नशे में चूर थे ।।
7
फिर अंधेरी रात का खौफ सताने लगा है ।
अपना एक सूरज था वह भी जाने लगा है ।।
बेवफाई के किस्से सरेआम क्या कर दिए ।
यह जमाना कितनी ही बातें बनाने लगा है ।।
वह गया तो सब शऊर ले गया मेरे जीने का ।
यह पतझड़ों का मौसम फिर डराने लगा है ।।
जिसे गीतों में हम दोस्त दोस्त लिखने लगे थे ।
वही शख्स अब हमें दुश्मन बताने लगा है ।।
हमने सोचा था हमारे कातिल को वो सजा देगा ।
मगर मुंसिफ उसको ही बचाने लगा है ।।
अब भी भूखे अम्मा बापू देख रहे हैं राह उसकी।
बेटा शहर में खूब कमाने खाने लगा है ।।
ये बादल ये बिजलियां ये हवाओं का मंजर ।
लगता है आदमी को फिर आजमाने लगा है ।।
मेरे हर शे र में रूहानियत डाल दे मौला ।
तेरा नाम ले कर दर्द कलम चलाने लगा है ।।
8
गुजरता साल…
शाम ढलती अंधेरा होता
और फिर सुबह
रोज सूरज का रथ चलता
पूर्वांचल से अस्ताचल की ओर
आदमी भी साथ-साथ
दौड़ता हांफता और थक कर सो जाता
रोज नए तजुर्बे रोज नए सुख
रोज नए दुख दामन में आ लिपटते ।
चाहे अनचाहे चेहरे की झुर्रियां
कभी महक उठतीं
कभी निराशा की धूल से
भर उठती तो
कभी थकी मांदी कुछ आराम चाहतीं ।
ऋतुएं ऐसे
अपने रंग छोड़ती हुईं गुजर जातीं
जैसे तितलियों के पंखों से
छूटे रंग
हथेलियों पर रह जाते हैं ।
मौसमों की मार से जहन के दरीचे
कभी चुपचाप अकेले सुबकते
तो कभी
फफक कर रो उठते अपनी रौ में ।
गुजरते साल के दौरान
दीवारों पर टंगे कलेंडर
मूकदर्शक से सबकुछ देखते
जैसे समय ने उन्हें
नियत समय के लिए अपना गवाह
नियुक्त किया हो ।
फिर नई भोर के साथ
नए कलेंडर सज जाते हैं दीवारों पर
समय की गवाही में
साल दर साल बदलते रहते हैं
रास्ते -पगडंडियां
कलेंडर -रिश्ते-स्वप्न और भावनाएं …।।
9
आगंतुक बरस
हे आगंतुक बरस
उड़ने वालों को क्षितिज भर उड़ान देना
खिड़कियों से झांकते ही
खुला निर्मल आसमान देना ।
हर आंगन खुशियों की
सौगात रखना
महकता हुआ दिन बहकती हुई रात रखना ।
चिड़ियों को चौंचभर
पानी देना
हर स्वप्न को रंग धानी देना ।
मुरझाए पेड़ों को
सब्ज़ रंग देना
फूलों को बहारों का संग देना ।
हर एक आंगन में
मौसम ऐ बहार रखना
हमेशा खुले सबके दरो दीवार रखना ।
जिंदा सबके भीतर
खूबसूरत एहसास रखना
बरस भर महकता मधुमास रखना ।
प्रतिबद्धताओं में पुख़्तगी भरा
सदैव कर्तव्यबोध रखना
ज़हन के दरीचों से दूर प्रतिशोध रखना ।
किसी भी राह में न
कभी अवरोध रखना
सौहार्द से परिपूर्ण सबके भीतर सौंदर्यबोध रखना ।
मेरे आगंतुक बरस
गुनगुनाते हुए आना
और फिर नाचते -गाते -मुस्कुराते हुए जाना।
20-12-2022
10
खुशियों के पल संभाल लीजिए ।
फिर नज्मों – गीतों में ढाल दीजिए।।
पहले अपने फर्ज को निभाओ तो सही ।
फिर अपने हक के सवाल कीजिए ।।
बक्शीश खुदा की हैं ये शोहरतें ये दौलतें ।
अदब से इनकी देखभाल कीजिए ।।
यह बदली हुई दुनिया है नए दौर की दुनिया।
तोड़ रूढ़ियों का सारा जाल दीजिए ।।
हर जगह यूं भी पूरा तोलने की जिद्द में।
बेवजह न कोई बवाल कीजिए।।
याद करे दुनिया तुम्हें बाद जाने के भी
दर्द ऐसा कोई कमाल कीजिए ।।
11
1
चलो पढ़ते हैं
अंधेरों के खिलाफ लड़ते हैं
नया इतिहास गढ़ते हैं ।।
2
चलो हम जिन्हें
अपना मसीहा मानते हैं
उनके नारों का असली सच जानते हैं ।।
3
चलो जो हमें
समता का अर्थ समझाते हैं
उनके द्वार पर एक रात बिताते हैं ।।
4
चलो गिरगिट से पहले
आदमी को आजमाते हैं
इनके रंग क्या क्या असर दिखाते हैं ।।
5
चलो देखते हैं
किस किस को यह हुनर आता है
जो लूट कर सब मुकर जाता है ।।
12
तुम उनसे सवाल क्यों नहीं करते…. कविता
ये जो कहते हैं कि
आप अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाओ
इस तर्क के पीछे वे
कितने ही प्रलोभन गिनाते हैं और गुणवत्ता के
स्वप्न दिखाते हैं
कभी उनसे पूछो कि
आपने इस सबके बावजूद भी
अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ाया
यह उपदेश खुद पर क्यों नहीं आजमाया
तुम उनसे सवाल क्यों नहीं करते ?
जो यह कहते हैं कि धर्म की शिक्षा बहुत जरूरी है
धर्म खतरे में है इसको बचाओ
इसलिए धार्मिक संस्थानों में
अपने बच्चों को पढ़ाओ
कभी उनसे पूछो कि
आपने अपने बच्चों को वहां क्यों नहीं पढ़ाया
उन्हें विदेश क्यों भिजवाया
यह उपदेश खुद पर क्यों नहीं आजमाया
तुम उनसे सवाल क्यों नहीं करते ?
ये जो कहते हैं कि स्वास्थ्य सुविधा
घर द्वार है
सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का अंबार है
लाखों का फ्री उपचार है
तो तुम क्यों नहीं हमारे साथ लाइन में खड़े होकर
फर्श पर लेट कर इलाज करवाते हो
तुम तो जुकाम के लिए भी विदेश जाते हो
तुम उनसे सवाल क्यों नहीं करते?
यह जो भ्रष्टाचार पर लंबे-लंबे भाषण देते हैं
विसंगतियों के उन्मूलन पर लंबी लंबी बहसें करते हैं
जनता की पीठ पर नारे लादकर भेड़ों की तरह
हांकते हो
झूठ की किताब लेकर आम आदमी का
भविष्य बांचते हो
तुम बिना रोजगार के भी
अरबपति कैसे हो जाते हो पीढ़ियों बैठ कर खाते हो
ऐसी भी क्या बात है
आपके पास ऐसी यह कौन सी करामात है
तुम उनसे सवाल क्यों नहीं करते ।।