कविताएँ
वक्त की हुंकार
यह कैसी वक्त की हुंकार मिलती है |
हो रही मानवता तार –तार मिलती है ||
मेरे बेटों –बहुओं से मुझे बचाओ तुम |
बेचारी करती बूढ़ी माँ पुकार मिलती है ||
आश्वासनों की घुट्टी जनता को पिला-पिला |
सत्ता शिलान्यासों से ही करती उधार मिलती है ||
दहेज-लोभियों के घर में आजकल |
बेचारी बेटी भोगती कारागार मिलती है ||
कभी सूखे कभी बाढ़ से कराहती हुई |
आज धरती उगलती अंगार मिलती है ||
सिसकती सरगोशियों का मंजर लिए हुए
पतझड़ के दामन में बहार मिलती है ||
रातों-रात अमीर बनने की हसरत लिए हुए |
युवा-शक्ति शार्टकट की शिकार मिलाती है ||
फन फैलाये आंतकवाद की जहरीली सर्पिणी|
देश-दुनिया डसने को तैयार मिलती है ||
मर गये स्वप्न सारे उम्र की दहलीज पर |
बोझ ढोती पीठ बूढ़ी लाचार मिलती है ||
‘दर्द’ की कलम लिखकर कड़वा सच आज का |
दुनियावालों को करती ख़बरदार मिलती है ||
मुस्कुराना चाहिए
मुश्किलें हों लाख फिर भी मुस्कुराना चाहिए |
आदमी को आदमी के काम आना चाहिए ||
बहकावे में आ भटक गये हैं जो अपनी राह से |
उंगली पकड़कर फिर उन्हें राह पे लाना चाहिए ||
सदियों से पसरा है यहाँ खौफ एक अंधेर का |
एक दीया उस दहलीज पर जलाना चाहिए ||
अपने ही थे वो लोग जो बैरी बने बैठे हैं |
पयाम दोस्ती का उस ओर जाना चाहिए ||
बाद में आती हैबात अपने अधिकार की |
फर्ज अपना यार मेरे पहले निभाना चाहिए ||
नायाब तोहफा है खुदा का यह जो मिली जिन्दगी |
इसका एक-एक पल काम आना चाहिए ||
धारा की दिशा में बहती हैं मरी मछलियाँ |
जिंदादिली को भंवर में आजमाना चाहिए ||
छीनता है जो रोटियां मुफलिसों के हाथ से |
कटघरे में बेनकाब कर दिखाना चाहिए ||
शूरवीरों-दानवीरों की गाथाओं से भरी |
दर्द किताबों में अपना नाम आना चाहिए ||