कवच
नई इक नीव रखनी है ज़माने को जगाना है
सुनो फलदार वृक्षों को, जतन कर अब बचाना है
तले बैठे हो तुम जिनके , कभी मत काटना जड़ से
कवच वो तुमरे जीवन का, उन्हीं से आशियाना है
© डॉ0० प्रतिभा ‘माही’ पंचकूला
नई इक नीव रखनी है ज़माने को जगाना है
सुनो फलदार वृक्षों को, जतन कर अब बचाना है
तले बैठे हो तुम जिनके , कभी मत काटना जड़ से
कवच वो तुमरे जीवन का, उन्हीं से आशियाना है
© डॉ0० प्रतिभा ‘माही’ पंचकूला