कल हो न हो
जाने कौन सी मुलाकात, आखिरी हो जाये
जाने यह क्षण कब बीता हुआ पल हो जाये
जी लो जी भर कर इन लम्हों को दोस्तों
न जाने कब, यह बात कल की दास्तां हो जाये
मत रखो दिलों में गम कोई
न जाने कब इस कारवां से रुकसत हो जायें
न रहें दिलों में दूरियाँ तनिक भी
हर श्वास से अपनी , प्रेम का संदेश दे जाये
उम्मीदों के घरौदें ढह जायेंगे यूँ ही
क्यों न अपने व्यक्तित्व की अमिट एक छाप दे जायें
पथरीली राहे तो मिलेंगी अनेक यूँ ही
अपनी उपस्थिति के कुछ तो निशां छोड़ जाये
खुशी से कट जाये यह जिन्दगी कुछ इस तरह
कि हम भी मुस्कायें और हर चेहरे पर
इक मुस्कान दे जायें।
डॉ. कामिनी खुराना (एम.एस., ऑब्स एंड गायनी)