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29 Dec 2022 · 1 min read

कल रात जंगल सोया नही,,,,

दोस्तों,
एक स्वतंत्र ग़ज़ल सादर प्रेषित है।

ग़ज़ल
=====

कल रात जंगल, सोया नही,
ऐसा भी नही, वह रोया नही।
=================

सदाऐं सुन न सका कोई भी,
लगा अपना उसने खोया नही।
=================

बरखा जम के बर्सी जमीं पर,
पर आस का बीज बोया नही।
=================

खिलती कलियां कैसे साहब,
लगा शज़र ने बोझ ढ़ोया नही।
=================

कत्ल कर दिया अरमानों का,
देखता रहा मगर वो रोया नही।
=================

जिस्म से अलग कर के जान,
लहू के आंसू ‘जैदि’ धोया नही।
==================

शायर::- “जैदि”

डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर।

Language: Hindi
133 Views

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