कल तलक तो महफिलें थी आज ये तन्हाइयां हैं
कल तलक तो महफिलें थी आज ये तन्हाइयां हैं
कल हमारी खूबियां थी आज बस रुस्वाइयां हैं
रूठी रूठी उम्र हमसे आ गई हैं साँझ बेला
अब अकेलेपन में लगता है मधुर यादों का मेला
व्यस्तता का दौर था वो वक़्त मिलता ही नहीं था
शोर गुल था ज़िन्दगी में,आज बस खामोशियाँ हैं
कल तलक तो महफिलें थी आज ये तन्हाइयां हैं
सजते रहते थे हमेशा आँख में सपने सजीले
भाया करते थे सभी रँग लाल काले नीले पीले
धूप हो या छाँव लगते थे सभी रंगीं नज़ारे
श्वेत श्यामल ज़िन्दगी अब हर तरफ परछाइयां हैं
कल तलक तो महफिलें थी आज ये तन्हाइयां हैं
कर दिए कर्तव्य पूरे है हमें संतोष इसका
ज़िन्दगी ने चाल बदली हम बतायें दोष किसका
अब नज़र आने लगीं हैं गलतियाँ हमको हमारी
आत्मचिंतन का असर है सोच में गहराइयाँ हैं
15-7-2022
डॉ अर्चना गुप्ता