कल क्या होना?? (मत्तगयंद सवैया)
बालक के उर में उठता यह प्रश्न बता कल क्या कुछ होना।
मातु बता कब पूरित हो, मनु पाल रहा वह स्वप्न सलोना।
हे मइया! इस जीवन में, कब क्या मिलना अरु क्या कुछ खोना।
चाह उठे उर में मइया, हल प्रश्न करो तबहीं तुम सोना।
पुत्र सुनो रवि के सम ही, नवपल्लव से अति कोमल होगी।
प्रेम प्रसाद लिए उर में, घर को सुखधाम करे उपयोगी।
पुत्रवधू कुछ काल गये, घर आन बसे जिसके तुम योगी।
हर्षित हो कछु देर रहा, फिर प्रश्न वहीं जिसका वह रोगी।।
तात बने सुत हो तुम्हरे, घर आन पड़े तब बालक तेरे।
क्लेश हुआ सुन बात प्रमोदक दौलत ही गुम जाय न मेरे।
बाल मना तब शोक भरे, दृग अश्रु भरा हिय चिन्तन घेरे।
बोल उठा सुन मातु बता, मन प्रश्न खड़े अब भी बहुतेरे।।
क्षोभ भरे मन से जननी, यह बोल उठी तब अन्त हमारा।
मातु कहे वह शब्द सुना, शिशु लोचन नीर भरे तब खारा।
पोछ दिया पल में दृग को, मुख कौतुक आज लिए अति प्यारा।
उत्सुक हो मुख खोल उठा, जननी अब बोल जवाब तुम्हारा।।
लेखक शब्द विहीन खड़ा, वह शब्द नहीं कवि उत्तर देता।
सोच रहा गुरु मान उसे, शिशु के पग में सर ही रख लेता।
आज मिली यह सीख बड़ी, बस काल हि है इक मात्र विजेता।
वक्त समान न श्रेष्ठ बली, भव में बस एक यहीं अभिनेता।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’