कल का ज़िक्र
कल का ज़िक्र न कभी किया जाए।
आज बस आज को जिया जाए।।
तू भी सोचे मुझे मैं भी सोचूं तुझे।
इतना सर दर्द क्यों लिया जाए।।
भूल जिसको हम नहीं सकते।
याद उसको, क्यों किया जाए।।
मौत का ख़ौफ़ तर्क करके ही।
जिंदगी का मज़ा लिया जाए।।
नतीजा कुछ अगर नहीं निकले।
वक़्त को वक़्त दे दिया जाए।
• डॉ. फौज़िया नसीम शाद