कल्पना
कविता भी क्या चीज़ है, कल्पना की उड़ान।
कवि शब्दों के जाल से, बुनता नया जहान।।१
भाव भरी यह कल्पना, कवि मन की पहचान।
इसी कल्पना से लिखे, कितने काव्य महान।।२
बहुत बड़ा है कल्पना, सपनो का भंडार।
जुड़े हुए मस्तिष्क से, इसके सारे तार।।३
अनुभव है बिल्कुल नया, होता नया विचार।
मानव का यह कल्पना,है अद्भुत संसार।।४
सदा कल्पना का शहर, होता बड़ा विचित्र।
बिखरे मानस पटल पर, अजब अनोखा चित्र।।५
कवि मन की कल्पना, होता उसका मित्र।
अहं भावना नाश कर, अंतस करे पवित्र।।६
कल्प लता है कल्पना,संचित करता ज्ञान।
प्रकृति और ये कल्पना, होता एक समान।७
जादू है यह कल्पना, पंखों का विस्तार।
महाशून्य में डोलती, यह पूरा संसार।।८
सुक्ष्म शक्ति है कल्पना, जिसका प्रतिभा नाम।
इसी कल्पना ने किया, बड़े-बड़े से काम।।९
भला बुरा क्या कल्पना, कंटक पथ स्वीकार।
दुख चिन्ता से मुक्त हो, बस सपनो से प्यार।।१०
चिन्तन, मनन कीजिए, यही कल्पना केन्द्र।
निर्विकार हो कल्पना, बनता तभी जितेन्द्र।। ११
दिव्य कल्पना शीलता,होता सुख का मूल।
झड़ते मानस पटल पर, रंग बिरंगे फूल।।१२
बुरी बला है कल्पना, चौकस रहो सदैव।
जो फसते इस जाल में, बचा न पाते दैव।। १ ३
सपनों का अजायबघर, लगता सुख की खान।
दुनिया से बिल्कुल अलग,बसता एक जहान।।१ ४
मन में जैसी कल्पना, वैसा लगता संसार।
दुनिया सपनों की बसा, इसके ही आधार।।१५
सृजन पटल पर कल्पना,बिखरे शब्द हजार।
तब कवियों के लेख में, दिखे पूर्ण उद्गार।। १६
मन का मानक कल्पना, है अनुभव का सार।
नित नूतन करता सृजन, होता दूर विकार।। १७
कभी सताती कल्पना, छिन लेती है चैन।
बन जाता पागल मनुज, करता खुद से बैन।। १ ८
बच्चों में यह कल्पना,उसका करे विकास।
जिसमें हो क्षमता अघिक, उसे बनाता खास।। १९
लक्ष्मम न सिंह