कल्पना
कल्पना बनाम नवसृजन………✍️
कल्पना निरभ्र गगन में उन्मुक्त पंछी
कल्पना रोचक रोमांचक स्वछंद उड़ान।
कल्पना सप्तरंगी सपनों का मधु प्रारब्ध,
मन देह की सीमाओं में जो नहीं होती आबद्ध।
कोई व्यक्ति जो कुछ भी हासिल करता है, वह सर्व प्रथम उसकी कल्पना में प्रकट होता है। अतः कल्पना मानव जीवन और समस्त संसार की प्रत्येक वस्तु की सर्जक है। यहां तक कि संपूर्ण ब्रह्मांड सर्वशक्तिमान स्रष्टा की कल्पना का परिणाम है। यह संसार उसी के द्वारा परिकल्पित एवं सृजित किया गया है तथा क्रमश: सुधार एवं विकास के लिए उसने असीम क्षमताओं वाले मानव मस्तिष्कों की रचना की है। वह कल्पना ही है जो हमारे लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अवचेतन मन को समाधान तलाशने के लिए सक्रिय बनाती है।
कल्पना एक शक्ति एक कला है जो प्रोत्साहन का नया स्तर सृजित करती है। आप और हम यह महसूस करना शुरू कर देतें हैं कि हम अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अप्रत्याशित रूप से कार्य कर रहे हैं।जैसा हम सोचते हैं, वैसा ही हम सृजन करते हैं।हमारी सोच कलात्मक विचारों का रूप लेती तभी हमारे विचारों को ऊर्जा हासिल होती है, शक्ति विकसित होती है, वे हमारे विचार ही तो हैं जो घटनाओं को सृजित एवं प्रकट करने के लिए प्रकाश की गति से संप्रेषित किए जा सकते हैं। यदि हम नकारात्मक सोचते हैं, तो हम नकारात्मक घटनाओं को ही आकर्षित करेंगे, क्योंकि हम वैसा ही करने के लिए संकेत भेजते हैं और एक जैसी चीजें ही एक-दूसरे को आकर्षित करती हैं।
कोई भी कार्य हमें तब तक ही कठिन और नामुमकिन लगता है जब तक हम उसे करना शुरू नहीं करते, कार्य हाथ में लेते ही हमारी कल्पना के घोड़े दौड़ने लगते हैं।फिर चाहे वो कोई भी काम हो।चित्रकार रंगों से, कुम्हार मिट्टी को आकार देकर, कवि, लेखक अपनी कलम द्वारा आदि सभी अपनी कल्पना को साधक की तरह साधते हुए नवसृजन करके घर,समाज,संसार को नई नई सौगात देते हैं, देरी बस अपनी कल्पना को जागृत करने एवं पहचानने की है।अपनी कल्पना
के पूर्ण होने में संदेह नहीं किया जाना चाहिए। ‘‘कल्पना बनाम नवसृजन………✍️’’ का उद्घोष मात्र संज्ञान कराना नहीं है-इसके पीछे प्रकृति के सौंदर्य को सरंक्षित रखने का संकल्प सन्निहित है। जिसको युवापीढ़ी के कला कौशल में चरितार्थ होते हुए प्रतिभा परिष्कार के रूप में देखा जा सकेगा। आवश्यकता है तो मशीनी उपकरण बनें बालको के भीतर छिपे कौशल को पह्चानने की क्योंकि “कोयले की खदान में बहुमूल्य हीरों” को तलाशने और तराशने की ही देरी होती है ,तराशते ही मणिमुक्तक उभरते और चमकते दिखाई देंगे।
नीलम शर्मा……✍️