कल्पना और यथार्थ
चांदनी के रथ पर
कल्पना की दुल्हन,
उमंगों की चुनर ओढ़-
चली छ म छ मा छ म।
यथार्थ के राक्षस ने-
रोक दिया रथ,
मोड़ दिया जाना पहचाना
अब तक का अपना पथ।
नैनो की पलकों पर-
आंसुओं की चुभन,
चारों ओर भ्रमित कोण-
व्यथित थकित अंतर्मन।
प्रकाशन के पुंज बीच-
सुनी सी अंगनारी,
सपनों की राख में-
खोजती है चिंगारी।