कल्पनाओं का रूप
मैं जब अपनी
इच्छाओं – कल्पनाओं को
साकार करती हूँ
तब उन्हें
मिट्टी में सान कर
चक्के पर डाल कर
अलग – अलग रूपों में
आकार देती हूँ ,
मेरा हर पात्र भिन्न होता है
मेरी कल्पनाओं सा रंगीन होता है
इनको देखकर सहलाकर
ये महसूस होता है
क्या मेरी कल्पनाओं का
इतना सुंदर रुप होता है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 19/10/91 )