कली गुलाब की
“ हसरत- ए – दीदार लेकर जाग उठी रात भी
चादर- ए-शबनम में लिपटी एक कली गुलाब की “
“ सावन की घटाओं में थिरकती बूंदें पानी की
तेरी ज़ुल्फ़ों से छिटकी तो होने लगी बरसात सी “
“ काफ़िले यादों के गुज़रे तन्हाई की राहों से जब
सुलगती निग़ाहों को थी अश्क़ों की तलाश भी “
“ कारवां ये अश्क़ के या मोतियों की लड़ी
चल पड़ी राहेनिगाह से तारों की बारात सी “
“ एक अंगड़ाई ने तेरी मौसम का बदला मिज़ाज
फिर उठा तूफां कोई जब चली सैलाब सी “
“ छू गया एक सर्द सा झोंका हवा का तारे दिल
फिर किसी शोले से भड़की जंगलों में आग सी “
“ हसीं जलवों से महका जो महफ़िल का कोई कोना
मचल के आबगीनों में तू छलकी फिर शराब सी “