कलियुग है
उद्यम जिसका कर्ज हो, झूठ बनाए फर्ज।
इनसे रहियो दूर जी, ये कलयुग के मर्ज।।
मन रथ पर बैठा हुआ, जिह्वा जिसकी तीर।
काम बसत जिनके नयन, हो कलयुग में पीर।।
पुत्र बना नहि पति बना, सीधा बन गया बाप।
शोषित कर पोषित हुआ, है कलियुग का पाप।।
बेचत हर संबंध जौ, दोऊ आंखन को मींच।
परिवारों का राहु वह, और कलियुग का नीच।।
हो जिनकी ताशीर सनम को लूट के खाने का।
सीखा जिसने हो सबको लाठी से समझाने का।।
महामूर्ख “संजय” वही जो देत डकैत को भीख।
मति उसकी मारी गई जो देय लठैत को सीख।।
जै श्री राम