कलियुग सा संसार
हम सभी को चाहिये
पत्नी हो तो सीता जैसी,
हम भी कभी राम बनेंगे
क्या यह भी सोचा है क़भी?
सतयुग बने संसार यह
की कामना हम सबकी है,
प्रवृत्तियां आसुरी हो तो
क्या यह सम्भव है कभी?
त्रेता में प्रतापी रावण रहा
द्वापर में भी रहा कंस,
कलियुग में विचरण कर रहे
आज इनके अनेकों अंश।
कुछ लोगो को बेशक
चाहिए कलियुग सा संसार,
करते रहे वे सब मनमानी
बचे रहे करने से उपकार।
कुछ मायने में कलियुग को
अच्छा बताया जाता है,
कम परिश्रम में ही मानव
मोक्ष को पा जाता है।
निर्मेष बाबा ने भी कहा है
युग कलियुग सा दूसरा नही,
विश्वास केवल परमात्मा में हो
भवसागर से पार होता वही।
निर्मेष