कलियां उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर
रचना नंबर (2)
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर
जिन्होंने निभाई जिम्मेदारियां
पालने से ले प्रगति पथ तक
बिछाए फूल कटीली राहों पर
याद रखे बुढ़ापे में लाठी बनना
अपना बुढ़ापा भूल मत जाना
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर
जो उठाते हैं शिक्षा का भार
ज्ञान की जोत जलाए रखना
भटकों को राह दिखाकर
चुका पाओगे गुरुदक्षिणा को
हाँ, कर्तव्यों को भूल मत जाना
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर
जो खुले रखते हैं सदा द्वार
अपने व पराए दोनों के लिए
लुटाते निस्वार्थ प्यार हमेशा
दी-हीन और निराश्रितों पर
उन्हें वक्त देना भूल मत जाना
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर
जो घर-बार छोड़,जाते सीमा पे
करते निछावर अमोल जानें
छोड़ जाते बिलखते माँ-बाप
भरी माँग व मेहँदी रचे हाथ
यादों में बसाना भूल मत जाना
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर
जो धरा को हरी-भरी बनाते
जीवजंतु पंछियों को पालते
पर्यावरण,जो हमारी करे रक्षा
ऐसे जीवनदाता का शुकराना
कलियाँ उन्हें लौटाना याद रखना
सरला मेहता
इंदौर
मौलिक