कलिपुरुष
न अच्छा पुत्र, न अच्छा पति।
लंपटराम बने जगपति।।
न अच्छा भाई, न अच्छा बाप।
झूठाराम बना अभिशाप।।
न अच्छा पशु, न अच्छा मनुज।
मायाराम बन गया दनुज।।
बात में लाख, जेब में ख़ाक।
दंभीराम हवा रहे फांक।।
ये कलयुगी आम, बिके सरेआम।
मिले न दाम जो बेंचे चाम।।
करें न काम, है फर्जी नाम।
दिन में है राम, शाम को जाम।।
अलग तरह के जीव ये, इनसे रहियो दूर।
“संजय ” परछाईं परे, सूखे सकल शरीर।।