#कलिकाल
#कलिकाल
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दानवी कलिकाल ऐसा,
दुर्जनों के भाल जैसा!!
वासना की आग मन में,
नोचले वह काग मन में।
मृत पड़ा अनुराग मन में-
पाप का परभाग मन में।
आज का यह काल ऐसा,
दुर्जनों के भाल जैसा!!
छल कपट अब पूर्णता में,
पुण्य केवल क्षीणता में।
मातमी मौसम की बेला-
आज है संपूर्णता में।
दंश का अब हाल ऐस,
दुर्जनों के भाल जैसा!!
देह पर आसक्त होकर,
वासना में लिप्त होकर।
पाल दैहिक उर पिपासा –
वक्ष संयम रिक्त होकर।
निश्चरी प्रज्जाल ऐसा,
दुर्जनों के भाल जैसा!!
तामसी अपवृत्त चुनकर,
निश्चरी चित्तवृत्ति चुनकर।
सोम पर अधिकार करने –
स्वयं ही अतिवृत्त चुनकर।
दानवी कलिकाल ऐसा,
दुर्जनों के भाल जैसा!!
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’