कला और ज्ञान के
पत्रक प्रसन्न ललचायी लेखनी को देख,
फैलायी है काया चौकी पर शैय्या मान के।
आयी है प्रिया सजाने मुझे मसि द्वारा आज,
अद्भुत मैं क्षण पाया प्रेम रसपान के।
दिव्य अपना मिलन लेखनी से बोल पड़ा,
सिद्धि हेतु कलाकार और विद्यावान के।
हो गया मिलन तो सृजन भी हुआ नवीन,
पूर्ण होने लगे ग्रन्थ कला और ज्ञान के।।
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ