*कलाकार का दर्द (कहानी )*
कलाकार का दर्द (कहानी )
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हरिराम जी उदास बैठे हुए थे ।आखिर क्यों न हों! भादो का महीना आ गया और क्वार में रामलीला शुरू होने वाली थी । लेकिन कोरोना के चक्कर में सारे काम रुके पड़े हैं। कलाकारों के लिए तो साल में यही एक मौका आता है, जब उनकी कुछ आमदनी हो जाती है और रामलीला मंडली की कुछ आमदनी होती है तथा साल भर का गुजारा उससे चल जाता है । इसी उधेड़बुन में हरिराम जी अपने घर के आँगन में चारपाई पर चिंता की मुद्रा में बैठे हुए थे । यही सोच विचार चल रहा था कि पता नहीं यह साल कैसा बीते ? अगर पिछली जैसी बात होती, तब तो अब तक मंडली बुक हो गई होती और उनके पास भरपूर एडवांस भी आ गया होता । लेकिन इस बार तो छोटे-छोटे कार्यक्रमों के लिए भी कहीं से कोई बुलावा नहीं आ रहा है । मंडली में जितने कलाकार हैं, सभी लोग लगभग रोजाना ही मिलते हैं और पूछते हैं कि कहीं से कोई मंडली पक्की होने का समाचार मिला ? हरिराम जी सबको बता देते हैं कि भैया काम धंधा ठंडा पड़ा हुआ है । सबके चेहरे लटक जाते हैं ।
इसी चिंतन में बैठे – बैठे सामने से तीन चार कलाकार आए और हरिराम जी के पास आकर बैठ गए। एक कहने लगा “भाई साहब सारी दुर्गति हम कलाकारों की ही रह गई है वरना सड़क पर न कोई मास्क लगाता है , न सामाजिक दूरी का पालन करता है। सब कुछ बस हमारी मंडली अपनी कला का प्रदर्शन कर दे, इसी पर पाबंदियाँ रह गई हैं ?”
हरिराम जी ने कहा “सरकार कुछ सोच समझकर ही कर रही होगी ?”
“क्या खाक सोच समझकर कर रही है। हमारे बच्चे भूखों मर रहे हैं और कहीं कोई लीला होती हुई नजर नहीं आ रही है । ”
“यह तो बात सही है”- एक अन्य आगंतुक ने सहमति का स्वर मिलाते हुए कहा । “अगर रामलीला हो जाए तो हम दर्शकों को मास्क पहना देंगे और सामाजिक दूरी का पालन भी करवा देंगे। कुछ तो काम धंधा चले ! ”
हरिराम जी बोले ” दशहरे का मेला भी लगवा दोगे। सोशल डिस्टेंसिंग उसमें भी करा देना।”
एक कलाकार ने कहा “कमाल है हरी बाबू ! आप स्वयं कलाकार होते हुए भी चीज का मजाक बना रहे हैं ? ”
हरिराम जी ने गंभीरता से कहा “दुखी मैं भी कम नहीं हूँ। लेकिन मैं समझ रहा हूँ कि हम न तो लोगों को मास्क पहना पाएँगे और न सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करा पाएँगे । कितने लोग मास्क पहनते हैं ? और जो पहनते हैं ,वह भी केवल नाम – मात्र के लिए चेहरे पर लटका लेते हैं । ऐसे क्या कोरोना से बच पाएँगे ? हम अपने आप को धोखा न दें। अपने कारोबार को शुरू करने के चक्कर में पूरे समाज में हम कोरोना फैला देंगे तो क्या हमारे भीतर का कलाकार हमें दोषी नहीं ठहराएगा ? अभी कल ही मेरी चचेरी बहन की मृत्यु हो गई थी । फोन आया था और भी दसियों लोगों की मृत्यु जान – पहचान में अथवा अनजाने लोगों की हो रही है । क्या धनी और क्या निर्धन ,सबको कोरोना खा रहा है। गंभीर बीमारी है । अगर फैल गई तो कौन बचेगा ? क्या हम अपने काम – धंधे के लिए पूरे समाज को परेशानी में डालना स्वीकार करेंगे ?”
हरिराम जी ने इतना कहकर चुप्पी साध ली और फिर काफी देर तक कोई कुछ नहीं बोला । उसके बाद सब उठ कर अपने – अपने घर चले गए । हरिराम जी अकेले रह गए और उसके बाद फफक कर रोने लगे।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451