कलयुग की माया
हे ! कलयुग की माया
!
जो थे मानव मर्यादित,
उनको अपना हथियार बनाया,
भक्त बन राम को पूजा,
फिर उन को ही व्यापार बनाया,
जो थे कपटी कलुषित,
लोभी भोगी को सरताज बनाया,
तन मन धन सब लूटा,
बन व्यभिचारी परिवार बनाया,
हे ! कलयुग की माया,
ये कैसा कंलकित स्वांग रचाया !!
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डी के निवातिया