कलयुग का प्रहार
मद में डूबा है संसार।
मचा है चंहुदिश हाहाकार।
मानवता व नैतिकता पर,
हुआ भंयकर कलि प्रहार।
छूट रहा है घर परिवार,
टूट रहा साझा परिवार,
स्वार्थ में जग डूबा,
सिर चढ़ बैठा है अहंकार।।
नारी की गरिमा अब,
छोटे परिधानों में सिमट गई।
संस्कार की देबी अब,
फैशन में है भटक रही।
आंख खोल कर देखो,
ये है कलयुग का प्रहार।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव पूनम