कलयुगी संसार
रह गयी ना अब किसी मन में कोई संवेदना।
है कहाँ आसान पढ़ना हृदयतल की वेदना।
वेदना संसार में कोई भी पढ़ पाता अगर।
ठेस पहुँचाते नही , ना छोड़ देते यूं अधर।
वेद-मन्त्र और शास्त्र पढ़ना तो बड़ा आसान है।
पर कठिन है ये समझना कौन, कब परेशान है?
उठ रहा है प्रश्रचिन्ह इंसानियत और विद्वता पर।
कर रहे नादानियां अब उम्र की परिपक्वता पर।
काश हो जाती समझ दुनिया में हर इक शख्स को।
देख पाता हर कोई गर आत्मा के अक़्स को…
ना किसी का दिल दुखाता, करता ना नादानियां।
फिर नही होती खड़ी इस जगत में परेशानियां।
कलयुगी संसार है ये, छल-प्रपंच का जाल है।
भूल जाते हैं सभी हर जिस्म एक कंकाल है।
झूठे और फरेबियों के बहुत सारे मित्र हैं।
हर जगह ही राजनीति करते ये विचित्र हैं।
सत्य कितना भी दिखायेगा अगर अच्छाइयां।
भ्रमित इस संसार में ना दिखेगी सच्चाइयां।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’🖋️