कलम से क्रांति
अब कलम से क्रांति लानी है।
सोई हुई जनता जगानी है।
बहुत सह लिया जुल्म ओ सितम,
सिर के ऊपर से जा लिया पानी है।
अब हर अत्याचारी के खिलाफ
एकजुट होकर आवाज उठानी है।
एकता में बल होता है
सच कर ये कहावत दिखानी है।
अपनी एकता का लोहा मनवा कर
हर अन्यायी को नानी याद दिलानी है।
ख़ामोशी को कमजोरी समझ लिया
कमजोर नहीं हम ये बात समझानी है।
जितने आँसूं बहाने थे बहा लिए
अब बनकर शेर दहाड़ लगानी है।
न्याय की लड़ाई हर हाल में लड़नी है,
कलम अपनी तलवार के जैसे चलानी है।
दुनिया भूला सके ना तुम्हें “सुलक्षणा”
ऐसी जग में अपनी पहचान बनानी है।