कलम से अपनी क्या लिख दूं…
मैंने तो पा मेरे बंशजों को,
मिला अन्याय,
दुख,शोषण,
तिरस्कार मेरे पूर्वजों को,
असहाय पीड़ा,
मेरे महापुरुषों को,
इन सब का हिसाब लिख दूं……..
कलमकार हूं कलम से अपनी मैं क्या लिख दूं ।
देखा मैंने बचपन से,
सभी अगड़ों को पढ़ा – लिखा,
शिक्षा से रही वंचित,
मेरी दादी,बुआ,और मां,
उनके अशिक्षित रहने की,
पीड़ा और दर्द से,
मिले अहसास को खिताब लिख दूं…….
कलमकार हूं कलम से अपनी मैं क्या लिख दूं ।
मेरे समाज को,
मिली प्रताड़ना,
यहां न मिला कभी,
न्याय और सम्मान,
उनके प्रति एक विशेष,
समाज का नज़रिया और,
उनकी दबंगई को बेहिसाब लिख दूं…..
कलमकार हूं कलम से अपनी मैं क्या लिख दूं ।
कलम से रह वंचित कबीर ने,
दुनिया को सात्विक संदेश दिया,
कलम मिली मां सावित्री को,
अठारह स्कूल दिए बनवाए,
एक कलम से बाबा साहेब ने,
देश का संविधान दिया बनाए,
कलम से मिला मुझे क्या इसपर किताब लिख दूं…….
कलमकार हूं कलम से अपनी मैं क्या लिख दूं ।