कलमें बनाऊँगा
1
जमाने भर की आँखों में नए सपने बनाऊँगा।
मैं बेगानों से गम चुनकर उन्हें अपने बनाऊँगा।
बनाने का हुनर बख़्शा खुदा ने गर कभी मुझको,
नहीं हथियार कोई भी मगर कलमें बनाऊँगा।।
2
तू है मोती मैं हूँ धागा
तुझ सँग लिपटा सोया जागा
ख्वाब में मर्जी पूँछी रब ने
मैंने साथ तुम्हारा माँगा।।
3
हमारे दिल में आँखों में समन्दर के ठिकाने हैं।
तुम्हारे मन की गलियों में बबंडर के फसाने हैं।
मैं तुमसे दिल लगाऊँ तुम लगा दो मन अगर अपना,
ठिकाने फूट पड़ने हैं समंदर भाग जाने हैं।।