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3 May 2024 · 1 min read

कलंक

प्रेम किया नहीं अबतलक
कारण रहा कलंक।
मातु पिता की छबि सदा
बेदाग रहे निष्कलंक।।

आम बात सोचे सभी
काम करो ये विचार।
नहीं संग आलोचना
जीवन बने अचार।।

कहि कलंक जो लग गया
एक बार भी भाय।
जीवन मुश्किल में पड़े
पुनि पाछे पछताय।।

यह कलंक एक चीज है
डरती दुनिया होय
दुविधा में जीवे सभी
अश्व बेच के सोया।

जीवन के हर मोड़ पर
है कलंक का डर
कुछ घटनाये छिपत है
कुछ है होत मुखर।।

इसी डरन के डर सुनो
चलता सोझ समाज
किया किनारे अब इसे
वृद्धाश्रम है आज।।

जीवन भर इस सोच के
हुआ गलत नहि काम।
निर्मेष इसी कारण कहीं
ना होवे बदनाम।।

निर्मेष

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