कर सकता नहीं
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चाह तेरी नज़र की इन्कार कर सकता नहीं,
अश्कों से लबरेज ये अब्सार कर सकता नहीं।
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सुबह का है आफ़ताब कि चाँद है तू रात का,
क्या कहूँ तुझको भला असरार कर सकता नहीं।
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तू वफ़ा कर या जफ़ा तुझ पर करेंगे उफ़ न हम,
चाह मेरी इस क़दर है वार कर सकता नहीं।
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हों अगर हम इस किनारे और तू उस पार हो,
“तू समंदर तैर कर तो पार कर सकता नहीं।”
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दूरियां औ फ़ासले जो बन गये कैसे मिटें,
बन्धनों को तोड़ कर तू प्यार कर सकता नहीं।
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रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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