कर लो मुझे स्वीकार अब तुम भी प्रिये ।
कर लो मुझे स्वीकार अब तुम भी प्रिये ।
धन धान्य जीवन धन निछावर,
कर रहा हूँ मैं प्रिये,
प्रेम-पथ की सहचरी बन रूपसी,
कर लो मुझे स्वीकार,
अब तुम भी प्रिये ।
हाथ अपना आज दे दो हाथ में
सौभाग्य से हम तुम मिले हैं साथ में ,
आशीष हमको दे रहे धरती गगन
और फिर साक्षी बनी पावन अगन
दे दिये मैंने तुम्हें सातों बचन
बांधता अब प्रीत बन्धन में प्रिये
कर लो मुझे स्वीकार अब तुम भी प्रिये ।
पूर्व में थीं स्वप्न में तुम दूर सी
चांद के विखरे हुए कुछ नूर सी
बन के मेरी संगिनी सहधर्मिणी
आज फिर सौभाग्य से तुम मिल गईं,
व्यग्र उर में प्रीत की सतरंग कलियाँ खिल गईं
साथ हम मिल कर रहेंगे अब प्रिये
कर लो मुझे स्वीकार अब तुम भी प्रिये ।
अनुराग दीक्षित