कर गया घायल कँवल को
कल तक था शख्स जो वो मकान से बाहर
उसने हि कर दिया मुझको जहान से बाहर
बहार लेकर कोई चमन में आये मेरे
खिले है फूल मगर गुलसितान से बाहर
नहीं होती है पुरी नींद क्या करें हम यार
होता है शोर रातों में मेरे मकान से बाहर
रंक हो या राजा बात इतनी जानो तुम
जाना है हाथ खाली ही जहान से बाहर
के निकला करो घर से जरा संभलकर तुम
दिवाने तेरे न हो जाए के मकान से बाहर
दे गया जख़्म मुझको और दिल भेद गया
शब्द निकला जो उसकी जबान से बाहर
कर गया घायल कँवल को उसका ही यार
के निकाल कर तलवार मियान से बाहर
बबीता अग्रवाल कँवल