कर्म
रक्ता छंद
मापनी-2121212
कर्म देव द्वार है।
एक दिव्य धार है
तुष्टि-पुष्टि प्यार है।
युक्ति-मुक्ति सार है।
कर्म रत्न खान है।
स्वेद रक्त दान है
कर्म ही प्रधान है।
सर्व शक्ति मान है।
कर्म छंद काव्य है।
पूर्ण पूज्य भाव्य है।
कर्म योग साधना।
श्रेष्ठ दिव्य भावना।
कर्म ही प्रयास है।
सूर्य का प्रकाश है।
कर्म कृष्ण राम है।
सर्व श्रेष्ठ धाम है।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली