कर्म सतत करती हैं बेटी
कर्म सतत करती हैं बेटी
कितनी मन्नते माँगते माता पिता,
जा जाकर हर मंदिर के द्वार में।
करते हैं संतान कि कामना हरदम,
खुशीयाँ कब आये झोली में।
ढ़ोल नगाड़े बजते उस घर,
प्यारी गुड़ियाँ के आने में।
देते बधाई सब चाहने वालें,
खुशियाँ बरसे जिस आँगन में।
जब रोती नन्ही बेटी तो,
माँ विचलित हो जाती हैं।
वैद्य हकीम के पास जाकर,
अपभ्रंश दूर भगाती हैं।
प्रतीक्षा करती बड़ी होने की,
शाला भेजे देकर संस्कार।
कर्म सतत करती हैं बेटी,
कर्म क्षेत्र के बढ़े आकार।
गर्व है उन सभी बेटियों पर,
जो माँ बाप का नाम रोशन करें।
नित नित आगे बढ़े हरदम,
फूल सी बगिया निज आँगन करें।
~~~~~~~~~~~~~~~~~
रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभावना,बलौदाबाजार (छ.ग.)
मो. 8120587822