Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Jul 2021 · 4 min read

कर्म या हकीक़त

कर्म या हक़ीक़त

कुछ समय पहले की बात हैं एक गाँव में दो दोस्त रहते थे रवि औऱ किशन । उनकी दोस्ती आस पास के सभी गाँव वालों के लिए एक मिसाल थी , वो कहने को अलग अलग माँ की कोख़ से जनमे हो लेक़िन वो सगे भाइयों से कम नही थे । साथ बड़े हुए रवि औऱ किशन की शादी भी एक साथ ही हुई, थोड़े समय बाद किशन की नॉकरी एक बड़े शहर में लग गई । वैसे तो किशन बहुत ख़ुश था इस बात से पर वो रवि को छोड़ कर नहीं जाना चाहता था , अपने बचपन के साथ औऱ अपने गाँव को छोड़ कर जाए तो भी कैसे !
रवि के बहुत बार समझाने पर भी किशन जाने को तैयार नही हुआ , लेक़िन रवि ने हार नही मानी आख़िर एक दिन रवि की कोशिश पूरी हुई औऱ किशन जाने को मान गया । रवि के लिये किशन को भेज पाना बहुत मुश्क़िल था , पर उसकी क़ामयाबी के लिए रवि को ये करना पड़ा । कब काम पूरा होगा कब आएगा कुछ पता नही था, उन दोनों को ये तक नही पता था कि वो एक दूसरे को कब देख पाएँगे । जाने से पहले रवि और किशन ने एक दूसरे को वादा किया था कि कुछ भी हो जाए कैसे भी हालात आ जाए लेक़िन हम कभी कोई गलत राह नही चुनेंगे, अपना अपना कर्म करेंगे । अब किशन शहर जाने के लिए निकल गया था औऱ दोनों ही अपनी अपनी राह पर चल दिये ।
समय पँख लगा कर उड़ता गया उधर किशन अपने उसूलों के साथ सफ़लता की सीढ़ियां चढ़ रहा था तो इधर रवि की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही थी वो अपने हालातों से परेशान था । धीरे धीरे रवि अपना किया हुआ वादा भूल रहा था, वो अब अपने कर्म को छोड़ अपनी हक़ीक़त को ध्यान में रखते हुए एक नए रास्ते पर निकल गया । रवि को ये नही पता था कि जिस राह पर वो चल रहा हैं कही न कही वो उसे अपने वादे से और कर्म से भटका रही थी । रवि किशन के जाने के बाद अपना किया हुआ वादा भी भूल रहा था, कहने को तो रवि जो काम कर रहा था वो उसके लिए ग़लत नही हैं लेक़िन चोरी करके अपने परिवार का पेट भरना उसकी हक़ीक़त बन गई ।
वक़्त बितता गया कुछ वर्षों बाद किशन वापिस अपने गाँव आया । सब कुछ बदल गया था लेक़िन उसे उम्मीद थी कि रवि आज भी वैसा ही होगा जैसा आख़िरी बार उसे देखा था । किशन एक ज़माने बाद रवि से मिलने वाला था वो बहुत ही
ख़ुश था, वो अपने मन मे अपने बचपन के दोस्त के लिए हज़ारों बातें लिए उसके घर के दरवाज़े पर खड़ा था । लेक़िन जैसे ही रवि ने अपने घर का दरवाज़ा खोला किशन की उम्मीदें औऱ उसकी हज़ारो बातें मानों ख़त्म हो गई थी । किशन रवि की ये हालत देख कर बहुत दुःखी था जिस रवि को वो जानता था न जाने वो रवि कहा चला गया, उसके हालात उसके रहने का अंदाज़ सब बदल गया ।
रवि किशन से मिलकर बहुत ख़ुश था लेक़िन एक तरफ़ वो अपनी हालत को देखकर बहुत शर्मिंदा था, किशन शहर में रहने वाला एक बड़ा अफसर औऱ रवि एक छोटे से गाँव मे चोरी से अपने परिवार का पेट भरने वाला एक साधारण व्यक्ति । वो पल जैसे ठहर सा गया था ना ही किशन कुछ समझ पा रहा था औऱ ना ही रवि अपने हालात समझा पा रहा था, चारों तरफ़ बस सन्नाटा छा गया ।
किशन ने रवि से पूछा कि हमारा बचपन, हमारी बातें, हमारे वादे सब कहा चले गए आख़िर ऐसी क्या मज़बूरी थी कि तुम्हें अपना वादा भूलना पड़ा । क्यों तुम्हारी हकीक़त तुम्हारे कर्म पर भारी पड़ गई ?
रवि ने किशन को अपनी सारी आपबीती बताई कैसे उसकी आर्थिक स्थिति बिगड़ गई क्यों उसे ये राह चुननी पड़ी । ये सब सुन कर किशन को बहुत बुरा लगा, हालात इतने बिगड़ जाएँगे दोनों ने कभी नही सोचा था । किशन ने रवि से कहा एक बार मुझे बताया तो होता अपने बचपन की दोस्ती इतनी कमज़ोर थी क्या की मैं तुम्हारी मदद करने भी नही आता या तुमनें मुझे इस क़ाबिल ही नही समझा ।
रवि ने कहा नही मेरे भाई ऐसा कुछ नही हैं, मैंने तो बस इसलिए नही बताया क्योंकि मैं तुम्हें परेशान नही करना चाहता था । मुझे माफ़ कर देना की मैंने अपनी हकीक़त से मजबूर हो कर अपना वादा तोड़ा औऱ अपने कर्म को छोड़ कर ग़लत राह चुनी । लेक़िन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि मैं ग़लत राह को छोड़ कर अपनी हकीक़त सुधारने की कोशिश करूँगा, औऱ दोबारा तुम्हें निराश नही करूँगा ।
अब सब कुछ सुधर रहा था रवि औऱ किशन ने एक दूसरे के साथ बहुत अच्छा वक़्त बिताया, थोड़े दिनों बाद किशन वापिस शहर लौट गया । अब रवि भी चोरी का काम छोड़ कर मेहनत से अपने परिवार का पेट भरने लगा था और दोनों ही अपनी अपनी दुनियां में ख़ुश थे ।

पायल पोखरना कोठारी

5 Likes · 4 Comments · 494 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"समझाइश"
Dr. Kishan tandon kranti
रात रात भर रजनी (बंगाल पर गीत)
रात रात भर रजनी (बंगाल पर गीत)
Suryakant Dwivedi
मुझे याद रहता है हर वो शब्द,जो मैंने कभी तुम्हारें लिए रचा,
मुझे याद रहता है हर वो शब्द,जो मैंने कभी तुम्हारें लिए रचा,
पूर्वार्थ
" पीती गरल रही है "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
हमनें कर रखें थे, एहतराम सारे
हमनें कर रखें थे, एहतराम सारे
Keshav kishor Kumar
विजेता सूची- “सत्य की खोज” – काव्य प्रतियोगिता
विजेता सूची- “सत्य की खोज” – काव्य प्रतियोगिता
Sahityapedia
भव्य भू भारती
भव्य भू भारती
लक्ष्मी सिंह
*साठ के दशक में किले की सैर (संस्मरण)*
*साठ के दशक में किले की सैर (संस्मरण)*
Ravi Prakash
हर ख़ुशी तुम पे वार जायेंगे।
हर ख़ुशी तुम पे वार जायेंगे।
Dr fauzia Naseem shad
दिया है नसीब
दिया है नसीब
Santosh Shrivastava
तिरंगा
तिरंगा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
आंखों की चमक ऐसी, बिजली सी चमकने दो।
आंखों की चमक ऐसी, बिजली सी चमकने दो।
सत्य कुमार प्रेमी
एक दिन मजदूरी को, देते हो खैरात।
एक दिन मजदूरी को, देते हो खैरात।
Manoj Mahato
आकाश के सितारों के साथ हैं
आकाश के सितारों के साथ हैं
Neeraj Agarwal
जीवन के अंतिम दिनों में गौतम बुद्ध
जीवन के अंतिम दिनों में गौतम बुद्ध
कवि रमेशराज
शराब का इतिहास
शराब का इतिहास
कवि आलम सिंह गुर्जर
सलाम
सलाम
Dr.S.P. Gautam
4688.*पूर्णिका*
4688.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
थोड़ा सा अजनबी बन कर रहना तुम
थोड़ा सा अजनबी बन कर रहना तुम
शेखर सिंह
जब मुझको कुछ कहना होता अंतर्मन से कह लेती हूं ,
जब मुझको कुछ कहना होता अंतर्मन से कह लेती हूं ,
Anamika Tiwari 'annpurna '
भिनसार हो गया
भिनसार हो गया
Satish Srijan
तू बढ़ता चल....
तू बढ़ता चल....
AMRESH KUMAR VERMA
बिगड़ता यहां परिवार देखिए........
बिगड़ता यहां परिवार देखिए........
SATPAL CHAUHAN
-दीवाली मनाएंगे
-दीवाली मनाएंगे
Seema gupta,Alwar
प्रीति क्या है मुझे तुम बताओ जरा
प्रीति क्या है मुझे तुम बताओ जरा
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
■नापाक सौगात■
■नापाक सौगात■
*प्रणय*
व्यक्तिगत अभिव्यक्ति
व्यक्तिगत अभिव्यक्ति
Shyam Sundar Subramanian
!! रे, मन !!
!! रे, मन !!
Chunnu Lal Gupta
किसी भी काम को बोझ समझने वाले अक्सर जिंदगी के संघर्षों और चु
किसी भी काम को बोझ समझने वाले अक्सर जिंदगी के संघर्षों और चु
Rj Anand Prajapati
Loading...