कर्म का मर्म
लोभ मोह मद और क्रोध में
हैं हम सब कैसे फसे हुए l
मेरा तेरा और तेरा मेरा
के नाग पाश में फसे हुए l l
रक्त मांस से बने शरीर को
तुमने सब कुछ मान लिया l
और क्रोध मोह से पोषित कर
अंतरात्मा को मार दिया ll
कुछ नहीं जाना साथ हमारे
ना कुछ खोना पाना है l
जब उड़ जाता प्राण पखेरू
रह जाता बस अफसाना है ll
ना पैसा न शौहरत तेरी
कुछ काम न आना हैl
पूरा जीवन दो गज में सिमटे
जब अंत समय को आना है ll
चाहे जितनी गीता पढ़ लो
चाहे तीरथ धाम तुम कर लो l
यदि कर्म का मर्म नहीं तुम समझे
फिर तो पूरा जीवन झूठा है ll
लगे है अपना सब सच्चा सच्चा
झूठा लगता हर जन है l
ये कलियुग की माया है
जिसने अपना दास बनाया है ll
शास्त्र पढ़े और धर्म को जाने
यही कर्म हमारा है l
मानुष से फिर पशु ना बन जाए
यही जीवन उद्देश्य हमारा है ll