‘कर्म कर’ (छायावाद)
संसार में जिससे नाम हो
जीवन में ऐसा काम कर।
सुकर्म से जीवन लकीर को
खींचता तू आगे बढ़।
अपने ठोस इरादों के शस्त्रों से
समस्याओं को चीरता चल।
जीवन में आगे बढ़ने के तू
लक्ष्य निर्धारित करता चल।
रुकने ना पाए कदम मेरे
चलता जा ऐसा मानकर।
संसार में जिससे नाम हो
जीवन में ऐसा काम कर।
कितने ही काँटे पड़े होंगे
जीवन की पगडंडी पर।
संघर्ष रूपी रोड़े भी होंगे।
जीवन के इस पथ पर।
साहस के मजबूत पैरों से
सब रोंधता तू आगे बढ़।
थकने ना पाए कदम तेरे
रुकावटों से हार कर।
संसार में जिससे नाम हो
जीवन में ऐसा काम कर।
हरियाली का लालच तुझको
अपनी और रिझाये आएगा।
फूलों के रंगों का लालच
आकर्षण में डालेगा।
टेढ़े- मेढ़े रास्तों का मोड़
पथ से तुझे भटका आएगा।
इस चक्रव्यूह को पार कर
चलता जा अपने मार्ग पर।
संसार में जिससे नाम हो
जीवन में ऐसा काम कर।
संकटों के काले बादल
चारों और मँडराएँगें।
आंधी और तूफान मार्ग में
खूब धूम मचाएंगे।
इन संकटों को देख जरा भी
मन तेरा घबराए ना
आत्मविश्वास के दिव्य अस्त्रों का
प्रयोग कर इसे पार कर।
संसार में जिससे नाम हो
जीवन में ऐसा काम कर।
फल की चिंता क्यों करता है
वह निश्चित है अगर।
सत्य और कर्तव्य प्रेम की
तूने जो पकड़ी है डगर।
बस इसी मार्ग पर आगे आगे
बढ़ता चल तो बढ़ता चल।
निश्चित ही ‘विष्णु’ सफल होगा
पार उतरने में यह भवसागर।
संसार में जिससे नाम हो
जीवन में ऐसा काम कर।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’
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