कर्म करते रहो
आँगन में एक कली खिली,
काँटो के संग वह है खेली,
धूप ताप सहन कर निखरी,
तब वह सुगन्ध रस से भरी,
भोरों से रहती सदा घिरी,
फिर भी रहती सदा हरी,
कच्चे घट को भी तप सहना पड़ता,
तब वो सबको ठंडा पानी देता,
बिना कर्म के फल नही मिलता,
सोते रहने से बस ख्वाब आता,
सिंह को भी मेहनत से मृग मिलता,
चाहे वह जंगल का राजा कहलाता,
कर्म तुम करो कहते यही पुराण और गीता,
जिसका करते नही प्रयोग वो नष्ट होता ,
।।।जेपीएल।।।