कर्म और भाग्य
कर्म और भाग्य
सारी सुख संपत्ति के साधन धरती
सतत श्रम करो भुज-बल से,
भाग्य के सहारे न जी तू मानव
भोगता रह जाएगा भाग्य के छल से।
धरती की इस मिट्टी को कर दे उलट-पलट
सींच-सींच कर नम कर दे जल से,
न बन तू आलसी रे मानव
भोगता रह जाएगा भाग्य के छल से।
ब्रह्मा विष्णु महेश नहीं देगा तुझे सहारा
बल दे तू कर्म प्रधानता से ,
प्रकृति नहीं डरकर झुकती है
कभी भाग्य के बल से ।
पढ़ निरंतर गढ़ सत्य को
संवरेगा जीवन शिक्षा से ,
धार्मिकता को हटा दे मन में
भोगता रह जाएगा भाग्य के छल से।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभावना (छत्तीसगढ़)
मो. 8120587822